वीरगति

मैं देश का नौजवान हूँ,
दुश्मनों के लिए तूफान हूँ।
जिस देश में मैं रेहता हूँ,
उस देश की मैं शान हूँ।।

हिंदुस्तानी हूँ,
देश की निशानी हूँ।
हैं साथी मेरे किसान,
मैं बारिश का पानी हूँ।।

हरपल कहता था मैं माँ से, एक मौका दे फर्ज़ निभाने का।
कर्ज़दार हूँ तेरा माँ, एक मौका तो दे कर्ज़ चुकाने का।।

और फिर एक दिन आया, जब देश को दुश्मनों से खतरा था।
तब अपने साथियों संग, मैं भी मैदाने जंग में उतरा था।।

चल रही थी गोली पे गोली,
खेल रहे थे हम लाल रंग से होली।
पर रुके नहीं बढ़ते गए हम आगे,
जोश देख हमारा दुश्मन डरकर भागे।।

खत्म हुआ जब सब, तो मौत लेने थी आई,
ज़मीन पर पड़ा देख मुझे, आँख साथियों की भर आई।
जब साथियों ने मेरे देश की मिट्टी, मेरे माथे पर लगाई,
तब भारत माँ को मैंने अपने दिल की बात बताई।।

मैंने कहा:-
माँ गोद में मुझको बुला, मुझको हसा मुझको रुला।
माँ गोद में मुझको बुला, मुझको हसा मुझको रुला।
तेरी गोद में मैं सोना चाहूँ, माँ गोद में मुझको सुला।।
माँ गोद में मुझको सुला।।

आपका दोस्त,
रोहित सलूजा
पी. एच. डी. विद्यार्थी
आई आई आई बी मोनेश रीसर्च एकेडमी

Comments

Popular posts from this blog

Why love keeps changing?

A lesson for a bike lover.

A small signal is enough for an intelligent person!